हमारे भारतीय संस्कृति और परम्पराओं के अनुसार विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है , लेकिन क्या सचमुच में आज के इस समय में ये एक पवित्र बंधन बन के रह गया है ????? ये गौर करने वाली बात है , कुछ सामाजिक कुप्रथाओं के कारण ये पवित्र बंधन आज एक ऐसे बंधन में परिणत हो गया है जिसके अंदर एक लड़की की शादी करने के लिए माँ बाप को किसी अच्छे लड़के की तलाश में दर दर की ठोकरे खाने को मजबूर होना पड़ता है , पैसे की कमी के कारन उन्हें क्या कुछ नही सहना पड़ता है , ये सब सिर्फ इसलिए होता है क्यूंकि उनके पास अपनी बेटी के लिए लड़के खरीदने के लिए उतना पैसा नही होता है | लड़की के माँ बाप अपनी बेटी को हर ख़ुशी देना चाहते हैं , लेकिन पैसे की कमी से उनकी ये अरमान पूरी नही हो पाती है , क्यूंकि आज के इस नए दौर में हर प्रकार के लड़के की अलग अलग कीमत है , और आपके पास जितना पैसा है आप उसी स्तर के लड़के को अपनी बेटी के लिए चुन सकते हैं ,,,,,,
बेटी की सदी के लिए माँ बाप उनके जन्म लेने से तब तक जब तक उसकी शादी नही हो जाती तब तक उसकी शादी के लिए पैसे जमा करने में अपनी sari उम्र गुजार देते हैं| .
इस दहेज़ रूपी महादानव ने आज अपना रूप इतना विकराल कर लिया है कइ इसकी आर में हर दिन सैकड़ों जाने जाती है , कोई अपनी बहु को दहेज़ की पूरी रकम ना मिलने के कारन जला कर मार देता है , तो कोई घर से निकल देता है , और कोई अपने घर में ही रख कर इतने जुल्म करता है की वो जीते जी मरने को बाध्य हो जाये |
इस दहेज़ रूपी राक्षश के कारन ही बेटी माँ बाप के सर की बोझ समझी जाने लगी हैं इसने समाज को एक ऐसे मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया है जिससे आगे का रास्ता सिर्फ और सिर्फ अंधकार की तरफ जाता है | और इससे बचना बहुत मुश्किल है | और इस काँटों से भरे रस्ते के लिए जिम्मेदार हैं खुद हम और हमारा
समाज | हमने सिर्फ पैसे के लालच में अपनी ईमान बेच दी है |
जिस रिश्ते को पवित्र बनाने के इतनी सारी मजबूरियां दुःख , अपमान सहना पड़ता है , क्या वास्तव में वो रिश्ता पवित्र हो सकता है ??????????????????
इसका जवाब सिर्फ ना है |
हमे इस रिश्ते को सही मायने में पवित्र बनाने के लिए इस दहेज़ रूपी महादानव का हमेशा के लिए अंत करना होगा|
तभी हम इस रिश्ते को पवित्र कहने के लायक रहेंगे, वरना नही|
--पल्लवी राय,मधेपुरा
बेटी की सदी के लिए माँ बाप उनके जन्म लेने से तब तक जब तक उसकी शादी नही हो जाती तब तक उसकी शादी के लिए पैसे जमा करने में अपनी sari उम्र गुजार देते हैं| .
इस दहेज़ रूपी महादानव ने आज अपना रूप इतना विकराल कर लिया है कइ इसकी आर में हर दिन सैकड़ों जाने जाती है , कोई अपनी बहु को दहेज़ की पूरी रकम ना मिलने के कारन जला कर मार देता है , तो कोई घर से निकल देता है , और कोई अपने घर में ही रख कर इतने जुल्म करता है की वो जीते जी मरने को बाध्य हो जाये |
इस दहेज़ रूपी राक्षश के कारन ही बेटी माँ बाप के सर की बोझ समझी जाने लगी हैं इसने समाज को एक ऐसे मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया है जिससे आगे का रास्ता सिर्फ और सिर्फ अंधकार की तरफ जाता है | और इससे बचना बहुत मुश्किल है | और इस काँटों से भरे रस्ते के लिए जिम्मेदार हैं खुद हम और हमारा
समाज | हमने सिर्फ पैसे के लालच में अपनी ईमान बेच दी है |
जिस रिश्ते को पवित्र बनाने के इतनी सारी मजबूरियां दुःख , अपमान सहना पड़ता है , क्या वास्तव में वो रिश्ता पवित्र हो सकता है ??????????????????
इसका जवाब सिर्फ ना है |
हमे इस रिश्ते को सही मायने में पवित्र बनाने के लिए इस दहेज़ रूपी महादानव का हमेशा के लिए अंत करना होगा|
तभी हम इस रिश्ते को पवित्र कहने के लायक रहेंगे, वरना नही|
--पल्लवी राय,मधेपुरा
क्या विवाह वाकई एक पवित्र बंधन है ?????????
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
6:38 am
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