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सामाजिक बुराईयाँ खत्म होने का नाम क्यों नही ले रही?

एक युग था जिसे आदिमानव का युग कहा जाता था, जहाँ ज्ञ!न, बुद्धि ,विवेक के अभाव में लोग पशुओं सा प्रतीत होते थे .पर आज तो हम उस युग से काफी दूर निकल गए लेकिन  आज भी कुछ पशु प्रवृत्ति जाने का तो नाम हीं नहीं ले रही . आज हमारे समाज के लिए चिंता का विषय है कि इस समाज का भविष्य क्या होगा, हमारा भविष्य क्या होगा?.
               अगर हम प्राचीन समय की बात फिर से दुहराएँ तो बहुत सारी हस्तियों ने  शायद ज्ञान के आभाव के बाबजूद भी कुछ ऐसे छाप छोड़े जिसे भूले नहीं भुलाया जा सकता .पर आज के इस दानव रूपी समाज ने तो ज्ञान रूपी श्रींगार को भी नहीं छोड़ा. अब तो ऐसा लग रहा है की अब ये दुनिया दानवों से थक कर थम न जाये .एक अच्छे परिवार ,संस्कार, ज्ञान से परिपूर्ण लोग भी अक्सर दानवों जैसा व्यवहार करते हैं, इन दानवों के बहुत सारे कुकृत्य  ने तो सारे समाज को शर्म से झुका दिया है. पर फिर भी  इसे जड़ से उखाड़  फेंकने की बात किसी ने उस तरह नहीं की.लगता है जैसे ये अपने स्वार्थ सिद्धी  के लिए अपन हर  कदम बढ़ाते हैं. आये दिन अख़बारों में  बलात्कार ,दहेज की मांग पूरी  न होने के कारण हत्या आदि ऐसे बहुत सारी  घटना है जिसे सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं .क्यों उस मासूम की जान ली  गयी  उसका अधिकार क्यों  छीना गया ? क्या यही  दिन देखने के लिए हमें आजादी और संवैधानिक  अधिकार मिले थे ! क्या इसे किसी ने कभी सोचा ? ...........
   --साक्षी, मधेपुरा.
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